मुझे भ्रम होता है कि
प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है,
हर एक छाती में आत्मा अधीरा है,
प्रयेक सुस्मित मे विमल सदा-नीरा है,
मुझे भ्रम होता है प्रत्येक वाणी में
महाकाव्य पीड़ा है;
पल भर मै इन सब से गुजरना चाहता हूँ,
प्रत्येक डर में से तिर आना चाहता हूँ।
इस तरह खुद को ही दिये-दिये फिरता हूँ,
अजीब है जिन्दगी!!
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