क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते जग में।
मुझे किसी से नही शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में॥
जनम मरन का विरक्त फेरा,
जीवन बंजारों का डेरा।
आज यहाँ कल कहाँ कूच है,
कौन जनता किधर सवेरा॥
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पंखो को तौलें।
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनंत कहानी॥
पर तन की अपनी सीमाएँ,
यद्यपि सौ बरस कि वाणी।
इतना काफ़ी है;
अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें॥
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