जीवन में हर मोड़ के बाद,
हर-एक-जोड़ और तोड़ के बाद,
वक़्त की बहती धारों में,
चुपचाप किसी सन्नाटे सा..
चलता रहा लक्ष्य की धुन में,
पता नहीं हैं कर्मभूमि का..
आज-अभी और नहीं कभी फिर,
प्रश्न असंख्य और छितिज के तिर..
अनगड़ स्वप्न, अनगड़ इच्छाएं,
अनगड़ लक्ष्य, अनगड़ सीमाएं
राह भले ही कठिन है दिखती..
पर चलना है..चलते जाना...
No comments:
Post a Comment